Tuesday, 20 October 2015

फिल्म के प्रोमोशन में मीडिया की भूमिका


आज वर्तमान युग व्यवसायीकरण (मार्केटिंग ) के उत्कर्ष को प्राप्त किये है, सारे माध्यमों का औद्योगीकरण होने के कारण मुनाफा ही उनका एक मात्र लक्ष्य है. इस बाजारीकरण से फिल्म उद्योग भी अछूता नहीं रह गया है| आज ज्यादा लाभ लेने के लिए वह अपने प्रचार प्रसार को ज्यादा तवज्जो देता है, और इसके लिए वह मीडिया शोध का सहारा लेता है| आज द्रुतगामी गति से  माध्यम ने पुरे रूप से अपने ग्राहकों को सुचना प्रदान करती है. इसी माध्यमों का प्रयोग फिल्म जगत अपने व्यवसाय को मजबूत बनाने के लिए किया करते है| फिल्म खुद भी एक सबसे लोक प्रिय माध्यम है इसके बावजूद उसे वर्तमान के तात्कालिक तकनीक ने प्रेरित किया है कि किस प्रकार वह उसके उपयोग कर दिन दुनी रात चौगुनी तरक्की पाए|
आज फिल्म प्रमोशन का जमाना है, दर्शक में अपनी छवि एवं पकड़ को मजबूत करने फिल्म को प्रस्तुत करने वाले भिन्न-भिन्न बैनर (जैसे यशराज, राजश्री, रेडचिली, वाईकोम इत्यादि ) कई माध्यमों को चुनते हैं और अपना फिल्म से जुड़े सारे प्लान और लक्ष्य को साथ में साझा करते हैं, मीडिया उस फिल्म के प्रमोशन के लिए शोध में लग जाती है. वह फिल्म के कथा वास्तु और उसके बैकग्राउंड को समझते हुए निर्धारित दर्शक के विषय को भी अपने शोध का हिस्सा बनाती है. फिल्म यूनिट पूरी तरह फिल्म के प्रीप्रोडक्सन से लेकर पोस्टप्रोडक्सन एवं उसके वितरण तक मीडिया शोध का उपयोग करती है, और एक निश्चित रुपरेखा में फिल्म के रिलीजिंग तक और उसके बाद भी प्रमोट करते रहती है. जितना हो सके उसे व्यवसायिक सफलता दिलाने हेतु प्रतिबद्ध रहती है.
फिल्म प्रमोशन में मीडिया शोध माध्यम के तीनों माध्यम का प्रयोग करती है. प्रिंट, टेलीविज़न रेडियो और वेब, ये सारे माध्यम शोध का हिस्सा बनती है, आज इस तीनों माध्यम अपनी प्रसिंगिकता बनाए रखने के कारण फिल्म प्रमोशन में महत्वपूर्ण भूमिका में रहती है. अगर तीनों माध्यमों की बात करें कि कौन सा माध्यम फिल्म प्रमोशन में सशक्त भूमिका में है तो कहना मुश्किल ही है |
वर्तमान में  मीडिया और मनोरंजन के उद्योग की बात करें तो टेलीविज़न उद्योग सबसे पहले पायदान पर है परन्तु वेब माध्यम की प्रति वर्ष वृद्धि दर 40% से ज्यादा है. इस दोनों माध्यम को फिल्म जगत फिल्म प्रमोशन में बहुलता से उपयोग कर रहा है|
आज घर- घर टेलीविज़न आ जाने के कारण हर दर्शक के लिए मनोरंजन कार्यक्रम सुलभ हो गया है. और इसका भरपूर फायदा फिल्म उद्योग ने उठाया है. आज सिर्फ अलग-अलग फिल्म से जुड़े चैनल ही नहीं अपितु टेलीविज़न के प्रसिद्ध और ज्यादा टी.आर.पी. वाले सीरियल में भी फिल्म यूनिट के सदस्य इसका हिस्सा बन अपने फिल्मों को प्रोमोट करते दीखते हैं. वर्तमान में फिल्म से जुड़े इवेंट को प्रति पल न्यूज़ चैनल एक विशेष मनोरंजन कार्यक्रम में प्रस्तुत करती है जो एक तरह से पेड न्यूज़ की तरह है. इस समय मनोरंजन चैनल भी आगामी फिल्म के ट्रेलर, संगीत कई महीने पहले से ही दिखाने लगते हैं जिससे दर्शकों में भी उस फिल्म के प्रति उसकी रोचकता बनी रहती है और उसे सिनेमाघर तक पंहुचा देती है|
इस सुचना क्रांति के सूत्रपात वेब माध्यम को अगर इससे अलग रखा जाए तो इस मीडिया शोध के एक अत्यंत महत्वपूर्ण  पहलु को भुलाने जैसा है. आज फिल्म प्रमोशन को वैश्विक पटल पर लाने का सबसे बड़ा योगदान है तो वह है वेब माध्यम में आने वाले कई सारे इसके महत्वपूर्ण अंग जैसे सोशल मीडिया, आई.पी.टी.वी., वेबसाइट, न्यूज़ पोर्टल इत्यादि. आज सोशल साईट ने फिल्म उद्योग को एक पुष्पक विमान के रूप में वो माध्यम दिया है जो त्वरित गति से उसे अपने निर्धारित दर्शकों से जोडती है, आज फिल्म बनाने वाली बैनर सबसे पहले फिल्म प्लांटटेसन से ही भिन्न –भिन्न सोशल साईट में फिल्म के पोस्टर को रिलीज करती है, जैसे सोशल माध्यमों में सबसे ज्यादा प्रचलित साईट फेसबुक, ट्विटर, यू ट्यूब  इत्यादि|फेसबुक पर फिल्मों के बने पेज की बात करें तो एक दो हफ्तें में ही लाखों की लाइक मिल जाती है और इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है कि कितनी पेज हिट होती होगी. आज के युवा वर्ग में इन सोशल साईट के प्रचालन के कारण ही मीडिया शोध इस विषय पर ज्यदा ध्यान केन्द्रित करती है. इस पेज पर हमेशा उस फिल्म से जुड़े मेकिंग से लेकर रिलीजिंग तक सारे सुचना को डाला जाता है जिससे दर्शक आसानी से मिल सके. , यू ट्यूब  जैसे प्रसिद्ध विडियो साईट पर फिल्म के प्रोमो ट्रेलर रिलीज होते ही घंटे भर में लाखों व्यूअर उसके हो जाते हैं और लाइक और कमेंट की बौछार हो जाती है.  इस माध्यम का सबसे बड़ा फायदा है कि यह किसी सीमा में बंधी नहीं है इसे जब चाहो जिस जगह चाहो यह आपको सारी सुचना उपलब्ध करा देती है. यह सारे माध्यमों का संगम है जो मीडिया के शोध में लगभग टेलीविजन माध्यम समरूप योगदान देता है|
प्रिंट माध्यम फिल्म प्रमोशन का सबसे पुराना और विश्वासी माध्यम के रूप में कार्य किया है और यह उद्योग मीडिया और मनोरंजन उद्योग में दुसरे पायदान पर है, आज प्रिंट माध्यम का अहम् और  प्रचलित हिस्सा अखबार मनोरंजन के खबर को अलग और विशेष पन्ने पर स्थान दिया है जिसमें आने वाली फिल्म के बारे में और उससे सम्बंधित होने वाले इवेंट की खबर को प्रमुखता से छपता है. अखबार वाले इससे अलग मनोरंजन विशेषांक जैसे सप्लीमेंट भी अपने ग्राहकों को उपलब्ध करवाते हैं जो मीडिया शोध का ही परिणाम है. जैसे दैनिक भास्कर में नवरंग, इनेक्स्ट में मूवी स्पेशल इत्यादि ...  इसके अतिरिक्त दर्शक को फिल्म रिलीज होने के बाद विशेष तौर पर फिल्म समीक्षा उपलब्ध करवाते हैं जो दर्शक को या तो सिनेमा घर की ओर जाने को प्रेरित करती है या उसे अतिरिक्त खर्च से बचाती है| ये फिल्मों को स्टार देती है जिससे दर्शक फिल्म के सफल और असफल के कारणों को जान कर उचित कदम उठती है. कई सारी मैगजीन भी फैशन और फिल्म से जुडी हर खबर को अपने ग्राहकों तक पहुचने में सफल माध्यम के रूप में है. जैसे फिल्मफेयर, फेमिना इत्यादि... यह सारे माध्यम में बदलता स्वरुप एक शोध का ही नतीजा है कि समय अनुरूप फिल्म, दर्शक, और प्रस्तुतीकरण में बदलाव आते गए हैं.
आज माध्यम नए तकनीक ने इसके प्रचार-प्रसार को व्यापक बना दिया है, आज फिल्म सिर्फ मनोरंजन के रूप में ही नहीं अपितु यह उपभोक्तावादी समाज में यह एक नए उत्पाद के रूप में परोसी जा रही है जो एक तरह से पुरे सामाज का जरुरी अंग बनकर उभरा है. मीडिया के इस बहुआयामी शोध का यह नतीजा है कि फिल्म प्रमोशन में ही यह तय हो जाता है कि यह सफल होगी या नहीं और इसका मापक दर्शक नहीं बल्कि इससे उगाही गई बॉक्स ऑफिस की कमाई हो गई है. जो विज्ञापन और दर्शक के द्वारा दी गई धन राशि है. आज फिल्मों में फूहड़ता और अश्लीलता  का प्रमोशन बहुत ही जोर- शोर से होता है जो नन्हें दर्शक की पीढ़ी को बहुत ही असभ्य  ढंग से उस ओर धकेल रही है जो आने वाले समय में एक वृहद् समस्या बनकर उभरेगी.
इस मीडिया शोध की दृष्टि को एक वाक्य में सार गर्भित करें तो बस आज की एक कहावत इस पुरे ढंग से स्पष्ट करती है ....... यहाँ जो दिखेगा वह ही बिकेगा........
इस उपभोक्तावादी सामाज में उपरोक्त कहावत और निष्कर्ष इसी बात का निचोड़ है कि समाज में सुचना एक उत्पाद के रूप में है जिसे दर्शक और जनता पैसे देकर खरीदती है.