Tuesday, 28 April 2015




दिवाली विशेषांक .......

आज घर सजा रहा हूँ, दिवाली है। 
ड्रेगन लाइट हैं, कुछ मोमबत्ती और दीये !
इस महंगाई में पर्व माना रहा हूँ, दिवाली है।
अब मिट्टी के दीये ज्यादा नहीं जलता,
कम खर्च में मिनी लाइट ले आता,
सिर्फ अपनी घर के रोशनी में, भूल जाता,
हैं एक और घर जहां इस दीये से रोशनी होती थी।
उसे बेच ही पूरे परिवार की पेट चलती थी।
इस दिवाली की आश लगाए ,
वर्षो पहले चाक़ों पे हाथ चलती थी।
अब तो पेट दुश्मन बन बैठा ज़िंदगी का,
इस दिवाली से दूर उस अंधेरी बस्तियों का।
क्यों रूठ गई लक्ष्मी इस परिवार से,
क्या भूल हुई इस मिट्टी के कलाकार से।
है कुछ बातें जिसे दिल में दबाये रखा हूँ ,
आज दिवाली है, घर सजा रहा हूँ... घर सजा रहा हूँ...

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