मेरी ज़िंदगानी
मैं अपनी जीवन कथा का प्रारम्भ अपने जीवन के कुछ मूलभूत क्षण जो बिताए हैं उसके द्वारा कर रहा हूँ|
कदापि यह उचित नहीं की नदियों धारा के संग मैं बह जाऊ और यह भी उचित नही की धारा के विपरीत मैं अपनी धारा को बहाऊँ |ज़िंदगी भी बड़ी अजीबो गरीब है कभी बहुत खुश कर देती है तो कभी अपने भविष्य को सोचने पर मजबूर कर देती है कभी-कभी सांसरिक सुखों को त्याग करने को कहती है तो कभी उनसे कदमताल मिला कर चलने को कहती है |इसी से संबन्धित कुछ कहानियाँ मैं आज आपके पास कहना छह रहा हूँ|
बात उस समय की है जब मैं अपने नन्हें कदमों से अपने बड़े भैया के साथ पढ़ाई करने साथ - साथ जाया करता था | रोज सुबह जग जाना और सुंदर सुंदर कपड़े को पहनकर अपनी मंजिल को पाने की होड में चलना बड़ा ही अच वो समय बीत रहा था जाम मैं कक्षा के. जी और बड़े भैया दो में थे |
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