Tuesday, 28 April 2015




    एक रोज सब गीत गाएँगे ............ 

एक रोज सब गीत गाएँगे ,
फिर हो सके तो गुनगुना पाएंगे,
उसके बाद गीत शायद उन्हें याद रहे,
वरना इस मैं - तुम की दुनिया में सारे भूल जाएंगे,,,,,
ये ईश्वर, खुदा, मसीहा, 
सब बातों की फितरत में आते हैं।
'मैं' आने पर ना जाने कहाँ चले जाते हैं।
ना खुद पे यकीन आए तो ,
मौजूद रह कर भी खामोशी बयां कर जाते हैं।
हर सवाल का जवाब हमशे ही खोजा करते हैं।
तभी सारे उलझन से परे ,
फिर एक गीत हम लिख जाते हैं।
धुन अपने मे ही बनाकर .....
फिर हो सके तो गुनगुना पाएंगे
एक रोज सब गीत गाएँगे

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